Jageshwar Dham Temple
Jageshwar Dham Temple

जागेश्वर मंदिर, जिसे जागेश्वर धाम भी कहा जाता है। यह मंदिर हिमालय के भारतीय राज्य उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर घाटी में स्थित है। भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग है, जिसमे 8वां स्थान नागेशं दारुका बने का माना जाता है, जिन्हे जागेश्वर, यागेश्वर, हाटकेश्वर और नागेश्वर इन चार नामो से भी जाना जाता है।

Jageshwar Front Entry

ऐसा कहा जाता है की, भगवान शंकर यहाँ स्वयं प्रकट है, मानव निर्मित एवं प्रतिष्ठित नहीं है। अर्धनारेश्वर रूपी शिवलिंग में दो भाग है जिसमे बड़े भाग में भगवान शंकर और छोटे भाग में माता पार्वती विराजमान है। जागेश्वर धाम में 125 छोटे – बड़े मंदिरो का समूह है जिनमे 108 शिवलिंग है और 17 अन्य देवी देवताओ की प्रतिमाये है। इसके अतिरिक्त दंडेश्वर मंदिर समूह भी है, जो अल्मोड़ा से जागेश्वर घाटी में प्रवेश करते समय ही दिखाई देता है। जागेश्वर मंदिर के पास में ही कुबेर मंदिर समूह भी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंदिर के पास एक संग्रहालय स्थापित किया है। जिसमे मुख्यत उमा-महेश्वर ( शिव – पार्वती ) की दिव्य छवि है।

Mrityunjay Temple in Jageshwar Dham

जागेश्वर धाम की मुख्य मंदिरो की सूचि में जागनाथ (ज्योतिर्लिंग), मृत्युंजय मंदिर, हनुमान मंदिर, सूर्य मंदिर, नीलकंठ मंदिर, नौ ग्रहों को समर्पित – नवग्रह मंदिर, पुष्टि माता मंदिर, लकुलेष मंदिर, केदारनाथ मंदिर, नवदुर्गा मंदिर, बटुक भैरव मंदिर शामिल है।

जागेश्वर धाम साल में 365 दिन खुला रहता है। यहां साल भर तीर्थयात्रियों का आवागमन लगा रहता है। दिसंबर मध्य से लेकर जनवरी अंत के अंतराल बर्फबारी का आनंद भी लिया जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन हल्द्वानी और काठगोदाम है, निकटतम हवाई अड्डा पटनागर  और पिथौरागढ़ है।

Ardhnareshwar Tree in Jageshwar
Ardhnareshwar Tree

कहानी

जागेश्वर मंदिर स्थल के बारे में कोई इतिहास नहीं है। ऐसा कहा जाता है की, श्री आदि शंकराचार्य जागेश्वर धाम में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करने के पश्चात् ही केदारनाथ धाम के लिये गये थे। बाद में 7वी शताब्दी में राजा शालिवाहन ने पुराने लकड़ी के बने हुये मंदिरो का पुन: निर्माण पथरो से कराया। उन दिनों, कैलाश मानसरोवर के लिये जाने वाले तीर्थयात्रि, यहां भगवान शिव की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेने के पश्चात् ही कैलाश मानसरोवर के लिए जाते थे। यह क्षेत्र भगवान शिव को मान ने वाले, लकुलेष शैव धर्म का भी केंद्र था। संत लकुलेष के बाद आए तीर्थयात्री लकुलेष को भगवान शिव के अट्ठाईस अवतारों में से अंतिम मानते हैं।

Jageshwar Temple Complex

मेरा अनुभव

मैं अब तक तीन बार जागेश्वर धाम जा चुका हूं, मेरा अनुभव वहां का काफी दिव्य और यादगार रहा है। मैं शिवरात्रि के अवसर पर भी एक बार गया था और हर बार ही मुझे वहां काफी ठंड का अनुभव हुआ है। जागेश्वर जाने में मुझे कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई, रास्ता बहुत ही अच्छा है। कभी कोई जाम भी नहीं मिलता और आराम से मैं पहुंच जाता हूं। मैं जब भी गया तो सुबह सुबह ही अपने घर से निकला और पहुंचते-पहुंचते शाम या रात हो ही जाती है। पहुंचने के बाद सबसे पहले तो कमरा देखता हूँ जो ₹500 तक में अकेले के लिए आराम से मिल जाता है। यात्री ज्यादा हो तो ₹700 से ₹1000 तक 1 से 2 जनों के लिए आराम से कमरा मिल जाता है।

पहुंचने के बाद रात को आराम करके, अगले दिन दर्शन करने के बाद कुछ देर आसपास घूम के वापस निकल जाता था इससे ज्यादा मैं कभी वहां रुका नहीं और ऐसा भी कभी नहीं हुआ कि मंदिर में दर्शन करने में दिक्कत हुई हो। एक बार शिवरात्रि के अवसर के दिन जब काफी लोग थे तब दर्शन करने में कुछ दिक्कत महसूस हुई थी, लेकिन वह शिवरात्रि का अवसर था तो सामान्य है।

मुझे वहां खाने के लिए बड़ी दिक्कत महसूस हुयी, खाना मुझे वहां ज्यादा पसंद नहीं आया। मैंने 3-4 जगह खाना खाया लेकिन मुझे खाना कहीं भी ज्यादा कुछ अच्छा नहीं लगा। अंडा ब्रेड में खाता नहीं दाल रोटी या पराठे ही मैंने हमेशा खाए हैं। वहां पर पानी की भी दिक्कत मुझे लगी लेकिन वह तो पहाड़ों पर अक्सर होती ही है। पानी में कुछ चिकनापन सा लगता है जो मुझे वहां भी लगा था बाकी तो कोई भी दिक्कत परेशानी नहीं हुई सब कुछ अच्छा ही रहा।

आप कभी भी वहां जाओ तो कुछ बातों का ध्यान रखना, एक तो वहां पर एटीएम नहीं है अपने साथ नकद जरूर लेकर जाना। दूसरा वहां कोई कोई ही नेटवर्क काम करता है तो इस बात का भी ध्यान रखना। बाकी वहां बारिश कभी भी हो सकती है, पहाड़ों पर जैसा होता है तो अपने साथ एक बरसाती भी जरूर रखना। बाकी तो जो महादेव की इच्छा वही होना है।

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