बागेश्वर धाम
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में, जैसे चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ प्रसिद्ध है। ऐसी ही कुमाऊँ मण्डल में जागनाथ और बाघनाथ प्रसिद्ध है, बागेश्वर धाम को ही स्थानीय भाषा में बाघनाथ कहा जाता है। बागेश्वर धाम, कुमाऊँ मण्डल का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो बागेश्वर जिले में स्थित है। जिसे स्थानीय कुमाऊँनी भाषा में बाग्श्यार (Bāgshyār) भी उच्चारित करा जाता है।
बागेश्वर धाम, सरयू और गोमती नदियों के संगम पर, बागेश्वर जिले में स्थित है। बागेश्वर जिला भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में स्थित है और कुमाऊँ की राजधानी, नैनीताल से 150 और भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 470 किमी दूर है। यह जिला अपने शानदार प्राकृतिक नज़ारो , ग्लेशियरो, नदियों और श्री बागनाथ मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। पश्चिम में नीलेश्वर पर्वत, पूर्व में भीलेश्वर पर्वत, उत्तर में सूर्यकुण्ड तथा दक्षिण में अग्निकुण्ड स्थित है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला भी लगता है।
बागेश्वर धाम महामृत्युंज्य मंत्र की रचना करने वाले, महामृत्युंज्य मंत्र को देवो के देव महादेव से सिद्ध कराने वाले, ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि भी है। तो चलिये जानते है आज ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि बागेश्वर धाम और बागेश्वर धाम की पौराणिक मान्यताओं के बारे में।
बागेश्वर धाम का पौराणिक महत्व
अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा जी को प्रसन कर के सरयू नदी को प्रकट किया। जैसे ही सरयू नदी, गोमती नदी से अपने संगम के लिये समीप पहुंची, तो वहां पास ऋषि मार्कण्डेय तपस्या में लीन थे। ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग ना हो, इसलिए सरयू वहां ही रुक गयी, और देखते देखते वहां जल भराव होने लगा। इस से चिंतित, मुनि वशिष्ठ ने तुरंत शिवजी की आराधना की। मुनि वशिष्ठ की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं बाघ का रूप धारण कर, माता पार्वती को गाय का रूप दिया। ऋषि मार्कण्डेय के समीप जाने पर, गाय को रंभाने के लिये आगे बड़े, जिससे ऋषि मार्कण्डेय की आंखें खुल गई। इसके पश्चात् भगवान शिव और माता पार्वती अपने वास्तविक स्वरूप में आये, और ऋषि मार्कण्डेय और मुनि वशिष्ठ को दर्शन देकर आशीर्वाद देते है। इसके बाद सरयू नदी और गोमती नदी का संगम हुआ।
भगवान शिव के व्याघ्र का रूप लेने के कारण इस स्थान को व्याघ्रेश्वर कहा जाने लगा, जो समय के साथ बागीश्वर हुआ और अब वर्तमान में बागेश्वर नाम से जाना जाता है। सन् 1602 मे राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर के नागरिको का बड़ा योगदान है। जिससे प्रभावित हो कर सन् 1929 में महात्मा गांधी स्वयं बागेश्वर नगरी के नागरिको से मिलने पहुँचे।
मेरा अनुभव
मै 2020 के दिसंबर के अंत में कुमाऊँ गया था। वहां जागेश्वर, वृद्ध जोगेश्वर, पाताल भुवनेश्वर के बाद बागेश्वर पहुंचा था। जब में अपने होटल से मंदिर दर्शन के लिए जा रहा था, तब ही वहां बागनाथ जी की आरती शुरू हुई थी। और जो उस समय मैंने वहाँ की दिव्य ऊर्जा को अनुभव किया, वो तो में शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता।
मेँ ज्यादा समय तो नहीं रुका था बागेश्वर में, मंदिर परिसर के पास में ही घुमा था केवल। बागेश्वर में गोमती और सरयू नदी का सुन्दर घाट और घाट के समीप भगवान शिव की विशाल मूर्ति पर्यटकों खूब लुभाती है। बागेश्वर के बाजार की बात करे तो बाजार में भी लगभग सभी तरह की वस्तुएँ मिल जाती है जो की उपलब्धता के अनुसार ठीक है। लेकिन वहां मांस और मदिरा का होना, अन्य तीर्थो से तुलनात्मक कहीं जयादा है। जिसका बागेश्वर जैसे तीर्थ पर होना मुझे बिलकुल पसन्द नहीं आया।