Manikaran Temple & Gurudwara

मणिकरण भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 500 किमी दूर, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह स्थान मणिकरण मंदिर और गुरुद्वारा मणिकरण साहिब और प्राकर्तिक गरम पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। मणिकरण मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है और यहां की कथा बहुत ही रोचक और पौराणिक है।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती एक बार धरती पर भ्रमण कर रहे थे। वे दोनों मणिकरण की सुंदरता से आकर्षित होकर यहां रुके। भगवान शिव और माता पार्वती कई वर्षों तक यहां रहे और इस दौरान माता पार्वती ने एक दिन अपने कान की बाली (मणिका) को खो दिया। यह बाली पानी में गिर गई और पाताल लोक चली गई।

Manikaran Temple Entry

ऐसा कहा जाता है की जब भगवान शिव को यह पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से पूरा ब्रह्मांड कांप उठा और पाताल लोक के राजा, शेषनाग जी ने डर के मारे ज़ोर से फुवार लगायी जिस से माता पार्वती की मणि (बाली) के साथ और भी कही मणिकाये पाताल से ऊपर की तरफ आयीं। तब से इस स्थान को ‘मणिकरण’ नाम से जाना जाता है।

Manikaran Temple Wide view

यह भी कहा जाता है कि जब शेषनाग जी ने मणिकाओं को वापस भेजा, तो वहां एक गरम पानी का चश्मा फूट पड़ा। यह चश्मा आज भी यहां मौजूद है और इसके पानी में स्नान करने दूर दूर से श्रद्धालु आते है और यह भी मान्यता है की यहाँ स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।

Lord Shiva at manikaran Temple

मणिकरण गुरुद्वारा भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह गुरुद्वारा सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी से संबंधित है। कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी ने यहां पर लंगर (सामूहिक भोजन) की परंपरा की शुरुआत की थी। इस स्थान पर लंगर में बनने वाले भोजन को प्राकर्तिक रूप से उत्पन हुए गरम पानी के चश्मों से आये हुये पानी से पकाया जाता है।

मणिकरण मंदिर और इसका पौराणिक इतिहास न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इस स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्ता इसे एक अद्वितीय तीर्थ स्थल बनाते हैं।

मै जब-जब कसोल गया हूँ , लगभग हर बार मणिकरण जरूर गया हूँ और मेरा मणिकरण के दोनों तीर्थ स्थानों का अनुभव काफी समरणीय भी रहा। सबसे पहले तो में 2021 में दूसरे लॉक-डाउन के बाद ही गया था। तब मणिकरण शिव मंदिर में तो उस समय ताला लगा हुआ था। लोग कम आ रहे थे और वो समय में कोविड  – 19 का डर भी खूब था। लेकिन उस दौरान मणिकरण गुरुद्वारा खुला हुआ था। स्नान करने की इच्छा तो थी लेकिन पानी बहुत ही गरम था, तो बस हाथ मुँह धो कर मथा टेका और फिर लंगर किया।

पहली बार मैं इतना तेज़ गर्म पानी प्राक्रतिक रूप से उत्पन हुआ देखा रहा था। कसोल के इलाके में लंगर का खाना भी कुछ अलग ही पसंद आया था। मणिकरण तीर्थ स्थल के आस पास नज़ारे भी काफी अच्छे लग रहे थे, इसकी वजह यह भी थी की में इस तरह के इलाके में आ भी पहली बार रहा था और मन में पार्वती घाटी की एक छवि भी कुछ अलग थी।

दूसरी और तीसरी बार मुझे यहाँ लोग भी काफी दिखे , मंदिर में जयादा और गुरुद्वारा में कम लोग दिखे। लेकिन अब मुझे कोई ऐसी खास इच्छा नहीं करती यहाँ जाने की। ऐसा कोई मुझे यहाँ अनुभव नहीं हुआ की मैं यहाँ दुबारा जाना चाहूँ, हाँ जो कभी इस तरफ नहीं आया हो उसको एक बार तो यहाँ जरूर आना चाहिये।

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