नीलकंठ, जिसका शाब्दिक अर्थ है नीला कंठ वाला है। पौराणिक कथाओ के अनुसार, जब देवताओं और राक्षसों द्वारा समुंद्र मंथन किया गया था , तो उसमे से 14 रत्नों की प्राप्ति हुयी थी। जिसमे से एक अति जहरीला ‘कालकुट’ विष भी निकला था, जिसमें समस्त संसार से जीवन ख़तम करने की क्षमता थी। समस्त संसार के कल्याण के लिये, वह कालकूट विष भगवान शिव शंकर ने ग्रहण किया था। विष को ग्रहण करने के बाद उनके गले का रंग नीला होने लगा और विष की ज्वलंता को शांत करने के लिए भगवान शिव शंकर यहाँ आये।
यहाँ के घने जंगलो में उनको शांति महसूस हुयी और उन्होंने यही पर हजारो साल तक तप किया। कैलाश वापस जाने से पहले भगवान शिव ने मानवता के कल्याण के लिए यहाँ कंठ के रूप में एक शिव लिंग विराजमान किया। वर्तमान समय में मंदिर में उपास्थि शिव लिंग भगवान शिव द्वारा स्थापित एक स्वयं भू लिंग है यहाँ भगवन शिव को नीलकंठ के रूप में पूजा जाता है।
नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से 32 किमी की दूरी पर स्थित भगवान शिव के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। यह घने जंगलों से घिरा हुआ है और नर-नारायण की पर्वत श्रृंखलाओं से सटा हुआ है। मंदिर में एक मुख्य शिवलिंग है और एक मुख्य मंदिर के बहार उपमंदिर में है। मुख्य मंदिर में जल, फल, दूध, बेलपत्र आदि अर्पित किये जाते है और बहार के शिव लिंग में शहद आदि। इसके अतिरिक्त भगवान शिव शंकर का धुना भी है जहां छोटे और बड़े अनेक त्रिशूल लगे हुये है। मंदिर के शिखर पर समुद्र मंथन को दर्शाते हुए विभिन्न देवताओं और असुरों की मूर्तियों है।
महा शिवरात्रि और श्रावण की शिवरात्रि मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्योहार है और त्योहार के दौरान कई भक्त दूर-दूर से मंदिर में आते हैं। श्रावण मास की शिवरात्रि के अवसर पर हर साल मंदिर में दूर दूर से लोग हरिद्वार से जल लाते है और लम्बी कतार में लग कर शिवलिंग में जल चढ़ाने के लिये इंतज़ार करते है। इसके अतिरिक्त हर नये साल पर 31 दिसंबर की रात नीलकंठ महादेव मंदिर परिसर में जागरण एवं भंडारा भी होता है।
मंदिर में आने के मुख्यत दो रास्ते है , एक सड़क द्वारा जो लगभग 32 किमी है और दूसरा जो परमार्थ आश्रम के पीछे से पहाड़ की चढ़ाई कर के आता है जो लगभग 12 किमी पढता है, इस रस्ते से आते हुए एक भैरव बाबा का मंदिर भी आता है। नीलकंठ मंदिर के पास लगभग 3 किमी की दुरी पर ऊपर की तरफ पार्वती माता मंदिर और लगभग 5 किमी की दुरी पर झिलमिल गुफा भी है।
पार्वती मंदिर तक चढ़ाई कर के और अपने वाहन से भी जाया जा सकता है परन्तु झिलमिल गुफा तक पहाड़ के बीच में चढ़ाई कर के ही जाया जाता है। नीलकंठ मंदिर कुछ लोग एक तीसरे रस्ते से भी आते है जो बैराज से होकर सीधा ऊपर झिलमिल गुफा के आस पास पहुंचते है और लोग फिर वहां से मंदिर की तरफ आते है लेकिन यह रास्ता बिलकुल घने जंगलो से घिरा हुआ है और इस रस्ते पर जंगली जानवरो का खतरा भी अधिक है। शिवरात्रि या महाशिवरात्रि के अवसर पर ही लोग यहाँ से आना जाना करते है।
निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून है।
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