प्रयागराज कुंभ मेला 2025
तिथियां, महत्व एवं अखाड़ों का इतिहास और महत्व
कुंभ मेला एक अद्वितीय धार्मिक आयोजन है, जिसका अनुभव करने के लिए लाखों श्रद्धालु और साधु-संत इसका इंतजार करते हैं। आगमी प्रयागराज कुंभ मेला 2025 की तैयारियां भी अभी से शुरू हो गयी है। यह मेला न केवल साधु-सन्तों एवं सिद्धो का मुख्य पर्व है, बल्कि उनकी आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। साधु-संतों के लिए यह मेला एक महत्वपूर्ण मौका होता है जहां वे झूमते-नाचते, अपनी शस्त्र कला का प्रर्दशन करते एवं अपनी तपस्या, ज्ञान और परंपराओं को आम जनता के साथ साझा करते हैं।
इस लेख में हम कुंभ मेला 2025 के स्नान की तिथियों, इसके महत्व, और अखाड़ों के इतिहास एवं उनकी भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
स्नान तिथियां - कुंभ मेला 2025
पौष पूर्णिमा (महत्वपूर्ण स्नान): 13 जनवरी 2025
मकर संक्रांति (शाही स्नान): 14 जनवरी 2025
मौनी अमावस्या (शाही स्नान): 29 जनवरी 2025
बसंत पंचमी (शाही स्नान): 3 फरवरी 2025
अचला सप्तमी (महत्वपूर्ण स्नान): 4 फरवरी 2025
माघी पूर्णिमा (महत्वपूर्ण स्नान): 12 फरवरी 2025
महाशिवरात्रि (महत्वपूर्ण स्नान): 26 फरवरी 2025
कुंभ मेला का महत्व और धार्मिक महत्ता
कुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों ”हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक” में आयोजित होता है। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस आयोजन के दौरान करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत यहां एकत्र होते हैं, जिससे इसकी दिव्यता और महत्ता और भी बढ़ जाती है।
कुंभ मेला की पौराणिक कथा
कुंभ मेले के आयोजन को लेकर सामान्यता दो पौराणिक कथाये सुन ने में आती है।
प्रथम कथा :- यह कथा गरुड़ के अमृत प्राप्त करने और अपनी मां को कद्रू के दासत्व से मुक्त कराने से संबंधित है। कथा के अनुसार, गरुड़ अपनी मां को सर्पों की मां कद्रू के दासत्व से मुक्त कराने के लिए अमृत लेने के उद्देश्य से स्वर्ग लोक पहुंचे। वहां देवताओं के राजा इंद्र उस समय मौजूद नहीं थे, और गरुड़ ने अन्य देवताओं को हराकर अमृत कलश ले लिया। जब गरुड़ अमृत कलश लेकर सर्पों के पास जा रहे थे, तब इंद्र ने उनका पीछा किया और अमृत को छीनने की कोशिश की। इस छीना-झपटी के दौरान अमृत की कुछ बूंदें ”हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक ” में गिर गईं।
द्वितीय कथा :- दूसरी कथा समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है। इसमें कहा गया है कि देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। मंथन के दौरान अमृत का एक घड़ा (कुंभ) निकला, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें ”हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक ” में गिरीं।
प्रथम कथा, जिसमें गरुड़ ने अमृत प्राप्त किया और इंद्र के साथ छीना-झपटी के दौरान अमृत की बूंदें गिरीं, वह अधिक प्रचलित और मान्य है।
उपरोक्त कथा के अनुसार, इन स्थानों पर कुंभ मेला के दौरान स्नान करने से एवं दान करने से भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिव्य आयोजन का महत्व और इसकी महत्ता इसे हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बनाती है।
साधुओं का प्रमुख पर्व - कुंभ मेला
कुंभ मेला विशेष रूप से साधु-संतों का पर्व माना जाता है। देश-विदेश भर के साधु इस मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। कुंभ मेले में शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के साधुओं की शोभायात्रा देखते ही बनती है। इन अखाड़ों के साधु न केवल धार्मिक शिक्षा में पारंगत होते हैं बल्कि अपनी शस्त्र कला का प्रर्दशन करते हैं। इस उत्सव में साधु-संतों की भव्य शोभायात्रा और उनके शाही स्नान का नजारा कुंभ मेले की विशेषता है।
अखाड़ों का इतिहास, महत्व और उनका विस्तार
अखाड़ों का कुंभ मेले में खास स्थान है। अखाड़े का अर्थ, उत्पत्ति और विस्तार इस प्रकार है।
अखाड़ा का अर्थ:- ‘अखाड़ा’ शब्द ‘अखंड’ से निकला है, जिसका अर्थ है एक संपूर्ण संगठन। यह संगठन साधुओं का एक समूह होता है, जो धार्मिक शिक्षा और शस्त्र विद्या दोनों में निपुण होता है।
उत्पत्ति:- जब भारत में जैन, बौद्ध और मुस्लिम संप्रदाय अस्तित्व में आए, तब हिंदू धर्म पर खतरा मंडराने लगा। उस समय, हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई। इन अखाड़ों ने न केवल ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाया बल्कि शस्त्रों का प्रशिक्षण भी दिया, ताकि विदेशी आक्रमणों का सामना किया जा सके।
विस्तार:- भारत के उत्तरी क्षेत्र से लेकर गोदावरी नदी तक के सभी संप्रदायों के संन्यासियों को 13 संघों में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें 13 अखाड़े कहते हैं। ये अखाड़े मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
शैव (दशनामी) अखाड़े:- इनकी मुख्य संख्या सात है: महा-निर्वाणी, जुना (भैरव), अवाहन, अग्नि, निरंजनी, अतल और आनंद।
आदि शंकराचार्य ने शैव संप्रदाय के सभी संन्यासियों को दस समूहों में विभाजित किया:- गिरि, पुरी, भारती, तीर्थ, बन, अरण्य, पर्वत, आश्रम, सागर, और सरस्वती। इन्हें ‘दशनामी अखाड़े’ कहा जाता है। इन अखाड़ों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र विद्या का भी अभ्यास कराया जाता है।
वैष्णव अखाड़े:- इनके तीन प्रमुख अखाड़े हैं: दिगंबर, निर्मोही, और निर्वाणी।
जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य के शिष्यों ने चार वैष्णव धार्मिक आदेशों को मिलाकर तीन बैरागी (वैष्णव) अखाड़ों की स्थापना की। वैष्णव अखाड़ों में शस्त्र विद्या के साथ-साथ धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन भी किया जाता है। ये अखाड़े धर्म और मंदिरों की रक्षा के लिए समर्पित हैं।
उदासीन अखाड़े:- इनकी संख्या दो है, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा और उदासीन पंचायती नया अखाड़ा।
इसके अलावा, सिखों का निर्मल अखाड़ा भी एक उदासीन अखाड़ा है, जो गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रेरणा से स्थापित हुआ था।
मेरा 2021 का कुंभ मेला अनुभव
प्रयागराज कुंभ मेला 2025 मेरा दूसरा कुंभ मेला अनुभव होगा। इससे पहले मैंने 2021 में हरिद्वार में कुंभ मेला का अनुभव किया था। वह मेरे जीवन का एक दिव्य अनुभव था, जहाँ मैंने गंगा में स्नान किया और साधुओं के शाही स्नान की भव्यता देखी। उस वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का अनुभव अविस्मरणीय था। इस बार, मैं प्रयागराज कुंभ में फिर से उसी दिव्यता का अनुभव करने की उम्मीद कर रहा हूँ।
Written at 19-10-2024
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